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पीएफआई (PFI) पर छापेमारी तो राजनीतिज्ञों को धर्म की याद क्यों आई

PFI Popular Front of India Flag

बहुचर्चित पीएफआई (PFI) एक ऐसा संघठन जो गुमनामी के नाम से निकल कर कानून की रडार पर पहुंच गया। अधिकांश लोगों को यह भी पता नहीं कि यह संघठन किस धर्म का है एवं इसका मकसद क्या है। पीएफआई पर छापेमारी हो रही यह सभी को पता है।

सबसे पहले पीएफआई की स्थापना के विषय में जानते है

सुधीर कुमार अवस्थी

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) PFI सबसे पहले वर्ष 2006 में केरल प्रांत में खड़ा हुआ अगले वर्ष 2007 में पहली आधिकारिक रैली बैंगलुरू में हुई।

पीएफआई का उद्देश्य उस वक्त मुस्लिम व दलित एवं आदिवासी समाज के जनकल्याण के लिए कार्यरत बताया गया था। लेकिन स्थापना के दस वर्षों बाद से यही संघठन धर्मांतरण, लव जिहाद, हिंसा, तस्करी व देशविरोधी गतिविधियों में संगठन के कार्यकर्ताओं के लिप्त होने के आरोपों के चलते पीएफआई आज एक सामाजिक संघठन की जगह पर कानून की रडार पर पहुंच गया है।

इन्हीं आरोपों के चलते जब 16 राज्यों में एक साथ छापेमारी हुई तो विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने इस जांच को राजनीतिक मुद्दा बना डाला जिन्होंने बगैर किसी सबूत के पीएफआई की आरएसएस से तुलना कर दी। लेकिन अपने आप को राजनीति के चाणक्य मानने वाले राजनेताओं ने दोनों ही संघठन को आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त बताया है।

अब इसे नेताओं की बदजुबानी कहें या फिर एक सोची समझी रणनीति जो अशिक्षित वर्ग के लोगों को नेताओं के कथनों का अर्थ समझने में दिक्कतें आएंगी। वह तो नेताओं के हर बयान को भईया का आदेश मानते हैं। क्योंकि देश में कानून व्यवस्था से ज्यादा लोग धर्म व्यवस्था में आस्था रखते हैं। इसलिए नेताओं को खुद की कुर्सी पर जब खतरा मंडराता दिखता है तो वह जनता के बीच जाकर दो धर्मों में विद्रोह की भूमिका अदा करते हैं।

जबकि खुद पर जब आरोप लगते हैं तो मामला न्यायालय में विचाराधीन है यह कहकर स्वयं को आरोपित भी कहलाना पसंद नहीं करते। पीएफआई में छापेमारी के दौरान सफेदपोश लोगों की हमदर्दी केवल इतनी है कि कानून की हथकड़ी की आवाज़ उनके दर तक न पहुंचे इसलिए शोर मचाने की जरूरत है।

अधिकांश लोगों की मौजूदगी विभिन्न संघठनों से लेकर नेताओं के साथ होती है उसका भी डर व मौजूदा छापेमारी की दहशत का कारण है। यदि आप सही हैं तो खुलकर जांच एजेंसियों का सहयोग कीजिए। यदि कोई व्यक्ति गलत तरीके से आकर संघठन में कार्य कर रहा है तो उस पर कार्यवाई कीजिए। लेकिन हर संघठन में कुल कितने लोग सम्लित हैं इनका बायोडाटा डिजिटल तरीके से सरकार के पोर्टल पर होना चाहिए। जो संघठन ऐसा नहीं कर सकते उन्हें बैन करने की जरूरत है लेकिन सही का साथ और गलत का विरोध जरूर करना चाहिए।

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