
इंडिया 24×7 न्यूज़: जी हाँ आपने देखीं नहीं क्या? नहीं तो ज़रा गौर कीजिए सत्ता और विपक्ष में बैठे उन सांसदों को जो अब भी मौन हैं। मौन हैं क्योंकि उनकी अंतरात्मा तो उनको धिक्कार रही है लेकिन इतना जिगरा नहीं की प्रधानमंत्री मोदी या अमित शाह के खिलाफ कुछ बोल पाएं। जिगरा नहीं है के अपनी ही पार्टी में अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों के हक़ में आवाज़ उठा पाएं। जिगरा नहीं है की आवाज़ उठा पाएं की गंगा में बहती लाशों में उनके पाने संसदीय क्षेत्र के लोगो भी बह रहे हैं जिन्होंने कभी अच्छे दिनों की चाह में भाजपा को वोट दिया था। हिम्मत नहीं है कहने की कि गंगा मई बहती लाशें उन हिन्दुओं की ही होंगी जिन्हे आपने और हमने हिन्दू राष्ट्र और अच्छे दिनों के सपने दिखाकर वोट लिया था।
हिम्मत नहीं है सांसद के रूप में इन चलती फिरती इन लाशों की जो प्रधानमंत्री को यह के सकें की मेरे क्षेत्र की जनता की लाशों पर सेंट्रल विस्टा का निर्माण नहीं होना चाहिए। हिम्मत नहीं है यह कह सकने की कि सेंट्रल विस्टा से ज़्यादा ज़रूरी है मेरे संसदीय क्षेत्र की जनता के लिए अस्पताल, वेंटीलेटर, ऑक्सीजन, रेमडेसिविर, एम्बुलेंस और शमशान में लकड़ियों की।
हिम्मत नहीं है यह कह सकने की कि राजेश प्रताप रुड्डी के घर पर छुपाई वो 60 एम्बुलेंस यदि इस्तेमाल में आ रही होती तो शायद कुछ जानें बच सकती थी। हिम्मत नहीं है यह कह सकने की कि यदि कुम्भ पर रोक लगा दी होती तो कितने ही हिन्दुओं को मरने से बचाया जा सकता था। हिम्मत नहीं है कह सकने की कि कुम्भ रोक दिया होता और चुनाव टाल दिए होते तो आज शायद यह हालात नहीं देखने पड़ते।
Embed from Getty Imagesहिम्मत नहीं है यह कह सकने की कि अब भी वक़्त है संभल जाओ और बचा लो उन ज़िंदगियों को जिन्हे हमने अच्छे दिनों और हिन्दू राष्ट्र के सपने दिखाए थे, ये ज़िंदगियाँ ही हैं जिनके दम पर जीत कर आए हैं और इन्हे ही बचा नहीं पा रहे।
हिम्मत नहीं है की उस राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ आवाज़ उठा पाएं जो राज्य के लोगों के लिए अस्पतालों की व्यवस्था तक नहीं कर पा रहे।
जाइये जनता के बीच और कहिए “हर हर मोदी – घर घर मोदी” जाइए लगाइए यह नारा अस्पतालों के बाहर जहां लोग इलाज के लिए तड़प रहे हैं, जाइए लगाइये यह नारा शमशानघाट के बाहर जहां लाशें अंतिम संस्कार के लिए लाइन में पड़ी हैं क्योंकि “मोदी है तो सबकुछ मुमकिन है”
हिम्मत नहीं है सांसदों के रूप में इन चलती फिरती लाशों की कि पूछ सके प्रधानमंत्री से कि जब दूसरी लहर की चेतावनी कई महीने पहले मिल चुकी थी तो हमने तयारी क्यों नहीं की ? हिम्मत नहीं है पूछें की जब पहले पता था कि दूसरी लहर आ सकती है तो क्यों ऑक्सीजन और वैक्सीन निर्यात की गई।
जी नहीं सांसद रूपी इन चलती फिरती लाशों की हिम्मत नहीं है कि विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी में लोकतांत्रिक रूप से सवाल उठा सकें, पूछ सकें इस देश की जनता यह सब कब तक झेलेगी, कब तक जारी रहेगी यह विनाश लीला? कब तक हम एक ब्राह्मण के रूम में रावण बनकर इस जनता के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे?
या तो ये सांसद डरते हैं की सरकार के पास इनके सभी काले कारनामो की सूची है और धर लिए जाओगे या फिर डर है की अगले चुनाव में टिकट नहीं मिलेगा। लेकिन यह चलती फिरती लाशें भूल गई हैं कि जिस महात्मा नरेंद्र मोदी के दम पर आप जीत कर आए हो उसकी लोकप्रियता का ग्राफ देश की अर्थव्यवस्था की तरह गर्त में चला गया है। वोट देना तो दूर कहीं जनता आपको पकड़ कर मारने न लगें या जूतों के हार से आपका स्वागत न करें।
झोला उठाने वाला तो झोला उठा कर निकल जायेगा लेकिन आपका क्या होगा ? अपने कर्मो का लेखा जोखा तो यहीं देना होगा। अपने लिए ना सही अपनी आने वाली नस्लों का ही सोच लो।
Embed from Getty Images